ICU – 30, August 2021

ऐसा लगा कि किसी ने जोर से धक्का दिया हो, देह सामने की ओर झुक गई, साथ खड़ी परछाई ने कहा, slowly,एक जाना पहचाना स्पर्श बालो को सहलाता हुआ, गला बुरी तरह से दर्द करने लगा, जागते ही मानों पीड़ाएं जग गई, तभी तो निद्रा शान्तिदायक होती है। तुरन्त ट्राली को दौड़ा कर पोस्ट ICU में लाया गया। शहद से भी मीठी आवाज कान में आई, अल्ला शरि आऊ अम्मा,,, अम्मा सब ठीक हो जाएगा, दांत आपस में जुड़ गए, किटकिटी बंन्ध गई, दो कोमल हाथों ने तुरन्त इलेक्ट्रिक वार्मर लिया और पूरी तरह से लपेट दिया, गरमाहट नसों में सोने सी पिघलने लगी, अब तक देह पूरी तरह से नेस्तांबूत हो चुकी थी, हाथों में नालियां, पैरों में भी ,,,दीमाग में सब उधल पुथल लगने लगा। लम्बे से हाल में सात आठ देहें हैं, सभी के आक्सीमीटर, प्रेशर न जाने कितनी सामग्रिया, पैरो पर क्रिकेट के पेड जैसे कुछ बांध दिए गए, जो पैरों की मांस पेशियों को गति दे रहा था। यानी की पूरी देह मशीनों पर चलने लगी, लेकिन मस्तिष्क का क्या, वह तो बिना पैरों के ही पांच सौ की रफ्तार में भाग रहा था। लेखकीय मस्तिष्क सक्रिय होने लगा, विचारों ने उथल पुथल मचा दी। सिस्टर धीमे से आवाज लगाई, सिस्टर ने उससे भी ज्यादा मीठी आवाज में जवाब दिया, अम्मा इन्द? यानी अम्मा क्या चाहिए, गले मेंबेहद दर्द है, मैंने कहा, अम्मा , चाय तराम?

दो सिस्टर एक एक वार्ड बाय फिरकनी से दौड़ दौड़ कर काम कर रहे थे,फुर्ती,और शहद सी आवाज ही केरल नर्सों को खास बनातीं है।

मूझे इन परियों के नृत्य का आस्वादन लेना है, सांस को भीतर बाहर लेना , अंकों में बांधना, देह में घुमाना शुरु कर दिया। देह के साथ मन स्थिर होने लगा.

शाम के चार बज गए, काली चाय सामने आ गई, फीकी काली चाय गले में अमृत सीगुजरी, तो और मांग रख दी, वे मुस्कुरा कर अश्वासन देती रहीं, लेकिन चाय नहीं आई, आती कैसे, उनका होटल नहीं था। वे बस बहला रही थीं।

रोगी आते जा रहे थे, बगल में दोनों बैड भर गए, अब एक बच्चे की ट्राली आई, जिसके साथ डाक्टरस भी थे, आखिरी बैड को पर्दों से बन्द कर कमरा सा बनाया गया, डाक्टर वहीं बने रहे. देह से जुड़ी सारी मशीने रह रह कर हालचाल पूछ रही थीं। सामने दो जर वद्धाएं, एकलगातार बड़बड़ाती हुई, केरला रोगी का भौजन आ गया, चावल की कंजी, और चटनी…. दो चार चम्मच नीचे उतारे, गला बेहद कड़कड़ाने लगा था. तभी हलचल मची,,,,,,सामने के पर्दे गिरा दिए गए, पीछे से बच्चे की ट्राली को आक्सीजन मानीटर के पास ले जाया गया, एनेस्थिशयन हाथ से धौंकनी दे दिल को हिलाने की कोशिश कर रही थी,…. बालक? या बाल बुद्ध, मुझे पर्दे की झिर्री से कुमुदुनि से कोमल बन्दनेत्र दिखाई दिए.बालक को फिर से पहुंचा दिया गया था, पर्देदार कमरे नुमा में,,,,,नर्स आई तो पूछा,,,,अम्मा बच्चा गया, उसका चेहरा भी देखने की हिम्मत नहीं है। उधर नब्बे साल उम्र वाली अम्मा जाग चुकी थी, चिल्ला रही थीं, शोभा, अरी शोभा, कहां गई, मुझे चाय दे दे, कुछ देर पहले ही नर्स उनके मुंह में कंजी डाल रही थी, तो वे मुंह को बन्द कर रही थी, पानी भी पीने को तैयार नहीं थी, अम्मा अपने घर वालों को पुकारती रहीं, वे समझ ही नहीं पा रही थीं कि यह घर नहीं है, उधर बालक की मां पिता को भीतर बुलाया गया,,, सिसकिया हाल में पसर गईं, हिलक हिलक कर दिल से रोने की मन्दिम ध्वनि…..सामने नब्बे सालाना अम्मा जी का शोर चालू था…..रात गहराने लगी,,,,अब मैं केवल दर्शक हूं,,,, सोच रही हूँ , बुद्ध किसी कोने में बैठे होंगे तो क्या सोच रहे होंगे? मृत्यु है, लेकिन जरित अवांछित जरा भी,,, रोग तो है ही…..

नर्सों के मुंह में पानी भी गया, पता नहीं,,,,, रात बुद्ध और ताओं से बात करते बीतने लगी,,,,, श्वास को थामने की कोशिश होती रही,,,

सुबह हुई तो अम्मा के साथ हम सब सो रहे थे, बालक के देह बन्द डिब्बे में जा चुकी थी.. सिसकियां बीत चुकी थी

एक मौत

एक जरा,,,, लेकिन वक्त पर चाय आई, नाश्ता भी, प्रेम से करवाने वाला वार्ड बाय भी,,, ब्रश पर पेस्ट लगा का मुंह साफ कर, जिस प्रेम से वह युवक नाश्ता करवा रहा था, सिर्फ कोई मां ही कर सकती है,,,

ड्यूटी बदल गई, एक प्यारी सी नर्स नें हाथ मुंह पौछ दिया, बाल बना दिए,,,,, कल और डाक्टर के आने तक सब कुछ सामान्य, देश के बेस्ट डाक्टर ने की थी सर्जरी,,,, वे कहने लगे, बड़ी जिद्दी गांठ थी, लेकिन हमने निकाल दिया, अब बायोप्सी के बाद फिर मिमियो, फिर थेरोपि,,, और असामान्य सा सामान्य,,

यात्राओं में विराम लग जायेगा,,,, क्या फरक पड़ता है,,, रोग यदि जाने का समय निर्धारित कर दे, तो अच्छा ही तो है,

करोना काल में हम कैंसर को भूल ही गए थे, उसका भी तो हक है महाराज,,

अभी कमरे में जाना है,,,,

show must go on,,,,,,